आज छज्जे पर गई
तो पाई एक पीली पतंग
उसकी डोर
गुलाब की डाली से
उलझी हुई थी
डोर सुलझाते हुए
आपकी वो हसी याद आ गई
उस पल की
जिसे आपने हमेशा याद रखने को कहा था
वो पल जिसे
तस्वीर भी कैद नहीं कर पाई
इसलिए मन का एक कोना
मैंने उस लम्हे का कर दिया
कुछ चीजें कुछ लम्हे
कुछ लोग
दुनिया की कैद से परे
आजाद हैं
फिज़ा की तरह
बेबाक हैं
हवा की तरह
बस छू जाते हैं कभी कभी
लहर बनकर
और दिल का एक कोना अपना कर जाते हैं
हस्सकार मैंने डोर सुलझाई
और पतंग को फिर से
उड़ा दिया।
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